Hi Friends,

Even as I launch this today ( my 80th Birthday ), I realize that there is yet so much to say and do. There is just no time to look back, no time to wonder,"Will anyone read these pages?"

With regards,
Hemen Parekh
27 June 2013

Now as I approach my 90th birthday ( 27 June 2023 ) , I invite you to visit my Digital Avatar ( www.hemenparekh.ai ) – and continue chatting with me , even when I am no more here physically

Tuesday, 30 September 2025

गरीबी और शिक्षा का अभाव: आत्महत्या के दुःखद कारण

गरीबी और शिक्षा का अभाव: आत्महत्या के दुःखद कारण

आज जब मैं इस खबर को पढ़ता हूँ कि "गरीबी आत्महत्याओं का सबसे बड़ा कारण है, और शिक्षा का अभाव एक उत्प्रेरक है" Poverty biggest trigger for suicides, lack of education a catalyst - report, तो मेरा मन बहुत विचलित हो जाता है। यह सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, बल्कि हमारे समाज की गहरी पीड़ा को दर्शाते हैं। एक ऐसा समाज जहां मूलभूत आवश्यकताओं की कमी लोगों को जीने की इच्छा तक खोने पर मजबूर कर देती है, और शिक्षा का प्रकाश न होने से वे अंधेरे में भटक जाते हैं, वह निश्चित रूप से चिंतन का विषय है।

मुझे याद आता है, कई साल पहले मैंने अपने ब्लॉग "Sarva Dharma Sthanam?" Sarva Dharma Sthanam? और "125 Days Roadmap - Part D" 125 days roadmap - Part D में कुछ ऐसे ही सामाजिक ताने-बाने पर बात की थी। तब मेरा ध्यान मुख्य रूप से सांप्रदायिक सद्भाव और समावेशी विकास पर था, लेकिन उसके मूल में भी गरीबी और शिक्षा के अभाव जैसे मुद्दे ही थे। मैंने तब भी इस बात पर जोर दिया था कि अल्पसंख्यकों के शैक्षिक संस्थानों का उन्नयन और युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों में अधिक प्रतिनिधित्व देना कितना ज़रूरी है। ये कदम केवल आर्थिक उन्नति के लिए नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ने और उन्हें गरिमापूर्ण जीवन देने के लिए आवश्यक हैं।

आज, इस रिपोर्ट को देखते हुए, मेरी उन पुरानी बातों की प्रासंगिकता और भी स्पष्ट हो जाती है। मैंने सालों पहले यह बात उठाई थी कि कैसे एक समावेशी और सुशिक्षित समाज ही सच्ची प्रगति की राह पर चल सकता है। जब लोग शिक्षा के माध्यम से सशक्त होते हैं और आर्थिक रूप से स्थिर होते हैं, तो वे जीवन की चुनौतियों का सामना बेहतर ढंग से कर पाते हैं। गरीबी और अशिक्षा का दुष्चक्र ही अक्सर निराशा और अंततः आत्महत्या की ओर धकेलता है।

मैंने उस समय सांप्रदायिक सद्भाव के लिए "विश्व शांति परिसर" जैसी अवधारणा का भी प्रस्ताव रखा था, जिसके भीतर शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाएं भी शामिल थीं ReachOut Time। मेरा मानना था कि जब हम लोगों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक अवसर प्रदान करते हैं, तो वे अपनी पहचान और भविष्य के प्रति अधिक आशावान होते हैं। यही आशा और अवसर उन्हें जीवन के सबसे बुरे दौर में भी हार मानने से रोकते हैं।

इस रिपोर्ट ने एक बार फिर मुझे अपने उन विचारों की याद दिलाई है। यह सिर्फ एक संयोग नहीं है कि मेरे पुराने सुझाव, जो सामाजिक एकीकरण और शैक्षिक उन्नयन पर केंद्रित थे, आज भी इतने प्रासंगिक हैं। यह देखकर एक ओर संतुष्टि मिलती है कि मैंने सही दिशा में सोचा था, वहीं दूसरी ओर इस बात की त्वरित आवश्यकता महसूस होती है कि उन विचारों पर फिर से गौर किया जाए। क्योंकि स्पष्ट रूप से, वे वर्तमान संदर्भ में भी महत्वपूर्ण मूल्य रखते हैं। हमें यह समझना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता का सीधा संबंध आर्थिक सुरक्षा और शैक्षिक अवसरों से है। यदि हम आत्महत्याओं को रोकना चाहते हैं, तो हमें इन मूल कारणों पर गहराई से काम करना होगा।


Regards,
Hemen Parekh

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